शब्द छंद मिलाय के, दियो साथ बइठाय|
कविता के नाम पर, तुकबंदी दियो रचाय||
पौवा एक लगाय के, रोटी बोटी खाय |
कल की चिंता छोड़ के, मस्त हो सो जाय ॥
पिता निर्देश पर जो वन में गुरु संग रहता,
किशोरा अवस्था में जो यज्ञ की रक्षा करता,
गुरु के आदेश पर जो अच्युत पिनाक तोड़ता,
स्वयंबर में जो जनक-सुता से वरित होता,
वह प्रभु श्री राम है, श्री राम है श्री राम है ।
विमाता की इच्छा और पिता के आदेश पर जो,
श्रद्धा से जो चौदह वर्ष के लिए वन गमन किया,
अहिल्या को श्रापमुक्त कर जो नारी का रूप दिया,
केवट के जिद पर हँस के जो अपना पाँव पखार दिया,
वह प्रभु श्री राम है, श्री राम है श्री राम है ।
गुरुकुल मित्र निषाद राज को जो प्रेम से गले लगाया,
प्रेमयुक्त सबरी के जूठे बेरों को जो श्रद्धा से खाया,
मरणासन्न जटायु को गले लगा कर जो श्रद्धा अश्रु बहाया,
बाली वध कर सुग्रीव को अन्याय से जो मुक्त कराया,
वह प्रभु श्री राम है, श्री राम है श्री राम है ।
सिया सुधि लेने मे जिसने वानर ऋक्ष का साथ लिया,
विजय हेतु यज्ञ मे पत्नीहर्ता रावण को स्वीकार किया,
सर्व शक्तिमान होकर भी, पथ हेतु समुद्र से विनय किया,
युद्ध टालने के लिए, सिया को वापस करने का प्रस्ताव किया,
वह प्रभु श्री राम है, श्री राम है श्री राम है ।
अपने पौरूष से जो ज्ञानी प्रतापी अहंकारी रावण का संहार किया,
लक्ष्मण को जो मरणासन्न रावण से शिक्षा लेने का आदेश दिया,
रावण की मृत्यु पर जो शोक, श्राद्ध और पश्चाताप किया,
विजित राज्य को रावण के ही लघु भ्राता को जो प्रदान दिया,
वह प्रभु श्री राम है, श्री राम है श्री राम है ।
22.012024
यह सूरज जब ढल जाता है
तब तिमिर छोड़ के जाता है
ठहराव तिमिर जो देता है
उसमें भी सृजन कुछ होता है
इस सृजन का अंकुर दिखता है
जब उदय सूरज का होता है
और अंत तिमिर का होता है
15.09.2020
मंगल पांडेय का आत्मभिमान, और भगत सिंह् का बलिदान ।
तिलक और सुभाष का ज्ञान , पटेल जैसों का अथक काम
इनके जैसे कई गुमनाम, ने हमें दिया है स्वतंत्र हिन्दुस्तान ।
इनके बलिदानों से उपजी आज़ादी का श्रेय कुछ बिचौलिये ले गये ।
जो सत्ता के शीर्ष पर बैठ कर, देश के कुछ हित को बेच गये ।
समय अभी भी बाकी है, चिंतन और मंथन करने का।
कौन यहाँ पर देशभक्त है, कौन जयचन्द पहचानने का ।
हुए नही अगर सजग अभी तो, पुन: गुलामी आयेगी ।
नये रूप को धर के गुलामी, रोज हमें सतायेगी ॥
15.08.2020
कोरोना-वाइरस
बिन बुलाये आये कोरोना,
तुने किये हैं बहुत बवाल।
गले लगाना बात दूर की,
हाथ मिलाना दिये छुड़वाय।
चहक रहें हैं मुर्गा मुर्गी ,
जिन्दे इनको दिये गड़वाय।
अपने आने के कारण पर,
चीन अमेरिका को दिये लड़ाय।
दुनिया भर में मरते लोग ,
तूने दहशत दिये फैलाय।
वापस जाओ वुहानी कोरोना,
झोला-झंडा लिये उठाय।
15.03.2020
इतना न अकड़ सीमा पर, मिल जायेगा तू मिट्टी में।
चीनी है तू घुल जायेगा, मेरी एक चाय की चुस्की में॥
26.07.2020
दुनिया भर के पापों को धोकर, नदियाँ यदि विसर्जित नही करती ।
तो मै भी नदियों सा मीठा होता, और नदियों सा पूजा जाता।
मेरी भी आरती होती, और वंदन गीत गाया जाता।।
फिर भी मेरा सौभाग्य है कि लाखों मेरे खारे गोद में पलते हैं।
बारिस का मीठा पानी भी मेरे खारे पानी से ही बनते हैं॥
07/12/2020
अछूत की शिकायत
हमनी के राति दिन दुखवा भोगत बानी
हमनी के सहेब से मिनती सुनाइबि।
हमनी के दुख भगवानओं न देखता ते,
हमनी के कबले कलेसवा उठाइबि।
पदरी सहेब के कचहरी में जाइबिजां,
बेधरम होके रंगरेज बानि जाइबिजां,
हाय राम! धसरम न छोड़त बनत बा जे,
बे-धरम होके कैसे मुंहवा दिखइबि ।।१।।
खंभवा के फारी पहलाद के बंचवले।
ग्राह के मुँह से गजराज के बचवले।
धोतीं जुरजोधना कै भइया छोरत रहै,
परगट होके तहां कपड़ा बढ़वले।
मरले रवनवाँ कै पलले भभिखना के,
कानी उँगुरी पै धैके पथरा उठले।
कहंवा सुतल बाटे सुनत न बाटे अब।
डोम तानि हमनी क छुए से डेराले ।।२।।
हमनी के राति दिन मेहत करीजां,
दुइगो रूपयावा दरमहा में पाइबि।
ठाकुरे के सुखसेत घर में सुलत बानीं,
हमनी के जोति-जोति खेतिया कमाइबि।
हकिमे के लसकरि उतरल बानीं।
जेत उहओं बेगारीया में पकरल जाइबि।
मुँह बान्हि ऐसन नौकरिया करत बानीं,
ई कुल खबरी सरकार के सुनाइबि ।।३।।
बभने के लेखे हम भिखिया न मांगबजां,
ठकुर क लेखे नहिं लउरि चलाइबि।
सहुआ के लेखे नहि डांड़ी हम जोरबजां,
अहिरा के लेखे न कबित्त हम जोरजां,
पबड़ी न बनि के कचहरी में जाइबि ।।४।।
अपने पहसनवा कै पइसा कमादबजां,
घर भर मिलि जुलि बांटि-चोंटि खदबि।
हड़वा मसुदया कै देहियां बभनओं कै बानीं,
ओकरा कै घरे पुजवा होखत बाजे,
ओकरै इलकवा भदलैं जिजमानी।
सगरै इलकवा भइलैं जिजमानी।
हमनी क इनरा के निगिचे न जाइलेजां,
पांके से पिटि-पिटि हाथ गोड़ तुरि दैलैं,
हमने के एतनी काही के हलकानी ।।५।।
हीरा डोम
यह कविता महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित ‘सरस्वती’ (सितंबर 1914, भाग 15, खंड 2, पृष्ठ संख्या 512-513) में प्रकाशित हुई थी
कितने ही रावण तुम मारो, कितने ही रावण भस्म करो।
फिर से पैदा हो जायेगा, चाहे तुम कितना यत्न करो ॥
रावण इतना परतापी है, कि जन-मानस पर छाया है।
सब में कुछ न कुछ रावण है, जो द्वेस दम्भ में बैठा है।।
पहचानो अंदर के रावण को, फिर इसका तुम संज्ञान करो॥
दूसरे के रावण को छोड़ो, तुम अपने रावण का संहार करो।
हर कोई अपना रावण मारे, तो असली रावण मर जायेगा।
राम्राज्य की परिकल्पना, शायद पूरा हो जायेगा ॥
08.10.2019
घिसट घिसट कर चलती हिंदी, सत्ता के दरबार में।
घर में ही परित्यक्त हुई, अंग्रेजी प्रिया के जाल में।।
14.09.2019
२०१९ के चुनाव की तैयारी है |
भेड़ियों का महागठबंधन,
शेर के खिलाफ जारी है ||
चुनाव में हारा यदि शेर तो,
महाभोज की तैयारी है ||
जनता को वादे कर आएंगे,
सुनहरे सपने दिखाएँगे |
सत्ता में आते ही, महाभोज मनाएंगे,
जनता का रक्त चूस के, मॉस मज्जा खाएंगे ||
26.01.2019
वेख फरीदा मिट्टी खुल्ली (कबर),
मिट्टी उत्ते मिट्टी डुली (लाश);
मिट्टी हस्से मिट्टी रोवे (इंसान),
अंत मिट्टी दा मिट्टी होवे (जिस्म);
ना कर बन्दया मेरी मेरी,
ना आये तेरी ना आये मेरी;
चार दिना दा मेला दुनिया,
फ़िर मिट्टी दी बन गयी ढेरी;
ना कर एत्थे हेरा फेरी,
मिट्टी नाल ना धोखा कर तू,
तू वी मिट्टी ओ वी मिट्टी;
जात पात दी गल ना कर तू,
जात वी मिट्टी पात वी मिट्टी,
जात सिर्फ खुदा दी उच्ची,
बाकी सब कुछ मिट्टी मिट्टी।
- बाबा फरीद
कहाँ गए जाड़े के वो दिन, जब छत पर धूप में सोते थे |
कभी कभी तो तेल लगा कर, अधनंगे ही धूप में सोते थे ||
तिल के लड्डू और मूंगफलियां, खूब मजे से खाते थे |
कभी कभी तो कौए भी, अपना हिस्सा लेने आते थे ||
मिल बैठ के चांडाल चौकड़ी, ताश के पत्ते फेंटती थी |
युवा वर्ग अक्सर ही, रेडियो पर प्रेम के धुन सुनती थी ||
चले गए अब वो दिन जाड़े के, फिर न लौट के आएंगे |
फ्लैटों में अब छत न रहा तो, कैसे जाड़े की मौज़ उड़ाएंगे ||
09.01.2018
बहुतों को खुद के दर्द को होने का दर्द है,
तो कुछ को खुद को दर्द न होने का दर्द है |
कुछ को दूसरों को दर्द होने का भी दर्द है,
बहुतों को दूसरे को दर्द न होने का दर्द है ||
दुनियाँ को जब करीब से झांककर देखा तो,
हॅसते खिलखिलाते चेहरे के पीछे दर्द ही दर्द है |||
24/02/2018
जल रहें हैं रक्त मांस, ज़िंदा आज आग में,
मिट रहें हैं अफ़ग़ान राजनीति की बिशात पे |
क्या ये सितम अरब खुद भी झेल पायेगा ,
या पेट्रो डालर से सिर्फ, दूसरों का लहू बहायेगा||
यदि हाथी ने की साइकिल सवारी, तो होगा ये अंजाम |
साइकिल तो पंक्चर होगी, हाथी भी गिरेगा धड़ाम ||
05.03.2018
इश्क़ है तेरा अल्लाह अल्लाह,
हुश्न भी तेरा वल्लाह वल्लाह|
कैसे खिदमत करूँ तुम्हारी ,
ये तो बता दो माशाअल्लाह ||
30.03.2018
नशे में तू रह ज़ालिम, तेरा अंजाम यह होगा
कुढ़ेगी दुनिया तुझ पे, मगर कुछ बात न होगा
गर तू होश में होगा , सताएगी दुनिया तुझे
तो तू खंज़र उठाएगा या होश खो देगा |
25.03.2018
दिल्ली की 'निर्भया' हो या कसूर की 'ज़ैनब'
जोधपुर की 'भंवरी' हो या कठुआ की 'आसफा'
इनको हैवानो ने रौंदा, ना मज़हब या सियासत ने
हैवानों को बचने ना दो, मज़हबी व सियासी ढालों से
14.04.2018
नए वर्ष में सुख मिले, शांति और समृद्धि |
ऐसी मेरी कामना, सबकी ऐसी हो वृद्धि ||
31.12.2017
"आप" ने भईया, खूब नाच नचायो |
पब्लिक को तो, तुम खूब भरमायो ||
काम न कर पाए तो, अफसर को पीटा |
गवर्नर के ऑफिस में, धरना देई आयो||
बात ना बनी इससे तो, पी एम् को लपेटो|
उनको भी उल्टी सीधी, तुम खूब सुनायो ||
19.06.2018
धरती पर पानी ही पानी, आसमान में होगी आग |
धरती रहने लायक नहीं रहेगी भाग सके तो भाग ||
प्रगति के नाम पर किया जलवायु परिवर्तन |
धरती पर रहने लायक, नहीं रहेगा कोई वतन ||
लालच छोड़, उत्सर्जन रोक, अभी भी संभल ले |
समय है, हो सके तो अभी भी, धरती को बचा ले ||
गऊ है माता, नंदी बैल ।
भारत में, चलता यह मेल ॥
श्वान है भैरव, बिल्ली मौसी |
कहाँ है रिश्ते, भारत जैसी ॥
शादी में गाते हैं गाली ।
भारत में है रीति निराली ||
" वोट "
पहिले-पहिल जब वोट मांगे अइले
तोहके खेतवा दिअइबो
ओमें फसली उगइबो ।
बजडा के रोटिया देई-देई नुनवा
सोचलीं कि अब त बदली कनुनवा ।
अब जमीनदरवा के पनही न सहबो,
अब ना अकारथ बहे पाई खूनवा ।
दुसरे चुनउवा में जब उपरैलें त बोले लगले ना
तोहके कुँइयाँ खोनइबो
सब पियसिया मेटैबो
ईहवा से उड़ी- उड़ी ऊंहा जब गैलें
सोंचलीं ईहवा के बतिया भुलैले
हमनी के धीरे से जो मनवा परैलीं
जोर से कनुनिया-कनुनिया चिलैंले ।
तीसरे चुनउवा में चेहरा देखवलें त बोले लगले ना
तोहके महल उठैबो
ओमें बिजुरी लागैबों
चमकल बिजुरी त गोसैयां दुअरिया
हमरी झोपडिया मे घहरे अन्हरिया
सोंचलीं कि अब तक जेके चुनलीं
हमके बनावे सब काठ के पुतरिया ।
अबकी टपकिहें त कहबों कि देख तूं बहुत कइलना
तोहके अब ना थकईबो
अपने हथवा उठईबो
हथवा में हमरे फसलिया भरल बा
हथवा में हमरे लहरिया भरलि बा
एही हथवा से रुस औरी चीन देश में
लूट के किलन पर बिजुरिया गिरल बा ।
जब हम ईंहवो के किलवा ढहैबो त एही हाथें ना
तोहके मटिया मिलैबों
ललका झंडा फहरैबों
त एही हाथें ना
पहिले-पहिल जब वोट मांगे अइले ....
गोरख पाण्डेय
राधे माँ, राम रहीम हो या आशा राम ,
कर गए अपने भक्तों के काम तमाम |
यह सिलसिला कभी भी न टूटेगा ,
नया बाबा नए भक्तों को लूटेगा ||
सिसक सिसक कर रोती हिंदी,
घर में कोई न पूछनहार ||
इठलाती इतराती अंग्रेजी,
गले पड़ गयी बनके यार ||
धरती तो आज़ाद हो गयी
फिर भी दास रहे हम यार ||
राजभाषा का नाम दिया तो,
क्यों करते हो ऐसा व्यवहार ||
14/09/2017
वही सबसे मस्त है, जिसका राम-नाम सत्य है |
वरना बन्दा पस्त है, जीवन का यह सत्य है ||
कैसी ये विडंबना, ये कैसा अपवाद है |
तुष्टिकरण के खिलाफ, जो बड़े नारे देते थे|
वही आज पदोन्नति में, आरक्षण के साथ हैं |
कथनी और करनी में, यही बड़ा फर्क है |
इसी लिये इस देश का, बेड़ा पूरा गर्क है|
देश से पहले पार्टी को, करना प्रशस्त है |
ए बी सी डी कोई हो, सब स्वार्थ में परस्त हैं |
१९४७ में देश हुआ स्वतंत्र, ७० साल बाद भी मन है परतंत्र
पीज़ा, बर्गर और टाई सूट के हम हैं आज परतंत्र
अंग्रेजी के चक्कर में हिंदी और संस्कृति हो गयी परतंत्र
असली स्वतंत्रता आएगी, जब मन होगा पूर्ण स्वतंत्र
पश्चिमी सोच और सभ्यता भागेगी जब होकर परतंत्र
योगी आये योगी आये, रोमियों को मार भगाये ।
स्वच्छता का पाठ पढाये, योग के गुण बतलाये ||
अब न चलेगा अराजकता, गुंडों को आँख दिखाए ।
अवैध कत्लगाह नहीं चलेगा, बूचड़खाने बंद कराये ||
छल कपट और बेवफाई इश्क़ मुझसे कर रही थीं|
मैं बेखबर नादान निकला दुनिया सारी हँस रही थी ||
कविता ऐसी कीजिये, जो भेजे में न समाय।
फिर भी श्रोता उछल कर, वाह वाह कर जाय||
चली गयी चांडाल चौकड़ी, अब आये हैं योगी ।
ऊपर से अब नहीं मिलेगा, रोवें सारे भोगी ||
चाह मिटी चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए, वही शहंशाह ||
-अज्ञात
कमल खिला है यू पी में, लेकर विकास का नाम |
साइकिल भी पंक्चर हुआ, हाथी गिरा धड़ाम ।|
कहकहे हैं आज महफ़िल में, आज उनकी रुसवाई है।
जो जिंदगी जिए ही नहीं, उनको ही हंसी आई है ||
न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना
~ राम प्रसाद बिस्मिल
भूख,महँगाई,गरीबी,इश्क मुझसे कर रही थीं|
एक होती तो निभाता,तीनों मुझपे मर रही थीं||
~हुल्लड़ मुरादाबादी
यह नए वर्ष का नया दिवस है।
न जाने कितना अमृत व विष है॥
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली|
जिसका जितना आँचल था उतनी ही सौगात मिली||
~ मीना कुमारी
रात कितनी काली हो, दिल में यदि उजियाली हो।
मंज़िले तो मिलेंगी ही अगर इरादे बलशाली हों॥
उरी में हमला हुआ, हुआ देश ग़मगीन।
छप्पन इंच छलनी हुआ, गद्दार बजायें बीन||
आतंकी मारे गए, ५६" सीना हुआ ठंढा|
लहरा दो सारे देश में, अब तिरंगा झंडा||
मुम्बई,पठानकोट से उड़ी तक,जब तूने किया लहूलुहान,
तब धैर्य का बाँध टूटा,अब न सहेगा हिंदुस्तान|
घर में घुस के मारेगा,अब भारत का हर वीर जवान|
मारे गए आतंकी जब आठ, गद्दारों की लग गई वाट|
स्यूडो सेक्युलर सत्ता लोलुप, पीटे छाती वोटन के खाति ||
कितना विरोधाभास है कितना कदाचार,
करते जो विरोध वही बढ़ाते भ्रष्टाचार|
देते खुद घूस और कोसते भ्रष्टाचार को,
कैसे यह बंद होगा,कोई तो बताओ तो||
काला धन कोयला हुआ, जब गए पांच सौ, हज़ार।
गरीब, किसान के नाम पर, चोरवें रोएं जार जार||
तप रहा है चाँद यूं, सर्द हो रहा सूरज क्यूँ|
जिस्म तो ठंडा पड़ा है,उछल रहा है जिगर क्यूँ||
आतंक के व्यापारी, भ्रष्टाचारी, काला बाजार के खिलाड़ी।
नोटबंदी की मार से हो गए है खेल में हारे हुए खिलाडी||
यह नए वर्ष का नया दिवस है।
न जाने कितना अमृत व कितना विष है॥
चुनाव के मौसम में, भेंडिया घूमे बन के गाय|
एक बार खूब वोट मिले, तो तुम्हे चबा के खांय||
समय बिताने के लिए, यदि करना है कुछ काम |
दारू की बोतल ले आ, और खाने का सामान ||
पहिला पैग लगाई के, बोल कुछ मीठे बोल ।
दूसरा पैग लगाइ के, फर फर अंग्रेजी बोल ||
तीसरा पैग लगाई के थोड़ा रोमांटिक हो जा ।
चौथा पैग उड़ेल के थोड़ा ग़मगीन हो जा ॥
पांचवा पैग लगाई के देवदास बन जा ।
छठवां पैग लगाई के शव आसान में जा ||
एक रहल अटल, तेरह दिन खटल|
जब केहू नाही पटल, तब अपने आप हटल ॥
-अज्ञात ( अटल जी की पहली तेरह दिन की सरकार पर }
"तब के नेता काटे जेल
अब के आधे चौथी फेल
तब के नेता गिट्टी फोड़ें
अब के नेता कुर्सी तोड़ें…"
तब के नेता डंडे खाए
अब के नेता अंडे खाए॥
तब के नेता लिये सुराज
अब के पूरा भोगैं राज॥
तब के नेता बने भिखारी ।
अब के नेता बनें शिकारी ॥
तब के एक पंथ पर चलते I
अब के नेता रंग बदलते ॥
हमर तिरंगा झंडा भैया, फहरावै असमान
येकर शान रखे खातिर हम, देबो अपन परान
~ कोदूराम दलित (कोदुराम जी छत्तीसगढ़ी है, दुर्ग जिले से हैं|)